जयजीणमाताजी
जीण माताजी का मंदिर अरावली पर्वत की श्रृंखला के निम्न भाग में अवस्थित है। यह स्थान सीकर से लगभग 30 किमी दक्षिण में व गोरियां से लगभग 15 किमी पश्चिम व दक्षिण के मध्य स्थित है। श्री जीण धाम में आने वाले श्रृद्धालुओं को सर्वप्रथम बस या रेल मार्ग से गोरियां आना पड़ता है। गोरियां स्टेशन रींगस सीकर रेल मार्ग पर रींगस जं. से चौथा स्टेशन है। गोरियां से प्रयाप्त मात्रा में साधन जीण धाम जाने को मिलता है। निकटवर्ती सीकर, रानोली, दांतारामगढ़, रींगस गोरिया आदि से भी वाहन सुलभ है। मेले के समय राजस्थान रोड़वेज की मेला स्पेशल बसें भी जयपुर, रींगस, सीकर, आदि से मिलती है। पर्वतराज हर्ष रैवासा, और जीण मां का पहाड़ एक ही श्रेणी में है।
जीणमाताजी के निकट ही महाराव शेखाजी ने गौड़ क्षत्रियों से युद्ध कर शरीर त्याग किया था। जीणमाता के पश्चिम की ओर जीणवास नामक खूड़ पट्टे का गांव है। यहां पुजारी लोग व कुछ बुनकर रहते हैं। महाराव रायमलजी और गौड़ों की लड़ाई की देवलियां भी हैं। पूजा अधिकार जीणमाताजी की पूजा अर्चना पाराशर गोत्रीय ब्राह्मण और सांभरिया खांप के राजपूत करते आ रहे हैं, जो मंदिर की भेंट पूजा की सम्पूर्ण आय के भागीदार हैं।जीणमाता जी का मंदिर तीन पहाड़ों के संगम में 20-25 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। माताजी का निज मंदिर दक्षिण मुखी है परंतु मंदिर का प्रवेश द्वार पूर्व में है, जिसकी लंबाई करीबन एक फर्लाङ्ग है। इसके एक छोर पर जीणमाताजी बस स्टैंड हैं आगे से ओरण (अरण्य) आरम्भ हो जाता है। ओरण के मध्य होकर ही आवागमन होता है। भगवती जीण मां मंदिर इस प्रांत का अत्यन्त प्राचीन शक्तिपीठ है, निर्माणकार्य सुदृढ़़ व बड़ा सुन्दर है। मंदिर की दिवालों पर तान्त्रिकों और वाममार्गियों की मूर्तियंा लगी हुई हंै। इससे यह सिद्ध होता है कि उक्त सिद्धान्त के मतावलम्बियों का इस पर अधिकार रहा है या उनकी साधना स्थली रही होगी? मंदिर के देवायतन का द्वार सभा मण्डप में पश्चिम की ओर है। भगवती जीण मां की अष्ट भुजा आदमकद मूर्ति प्रतिष्ठापित है। मां महिषासुर का वध कर रही है और मां का वाहन सिंह महिषासुर की पीठ को खा रहा है। सभा मंडप पहाड़ के नीचे मंदिर में ही एक मन्दिर है, जहां जगदेव पंवार का पीतल का सिर और कंकाली माता की मूर्ति है। मंदिर के पश्चिम में महात्मा का तप स्थान है जो धूणा के नाम से प्रसिद्ध है।
माताजी के मेले
जीण दरबार में चैत्र सुदी एकम् नवमी (नवरात्र) में अश्विन (आसोज) सुदी एकम से नवमी (नवरात्र में) विशाल दो मेले लगते हैं। इन मेलों में लाखों की संख्या में श्रृद्धालु देश के .कोने- कोने से आते हंै। कई यात्री सिर पर सिगड़ी (अंगीठी) लेकर दशनार्थ आते हैं तो कई गठजोड़े की जात लगाते हैं, कई बच्चों के जडूृले (मुंडन संस्कार) उतराते हैं, कई कीर्तन करते हैं, कई नोबत, छत्र कलश, झारी, चंवर सवामणी प्रसाद, भेंटादि चढ़ाते हैं। दुकानों गाजों बाजों व यात्रियों की भीड़ से धाम की स्मरणीय छटा मुग्ध कर देती है। देवी की आराधना शाकाहारियों के अतिरिक्त मांसाहारी भी करते हैं। जीण धाम में आवास व्यवस्था- जीण माता जी के मंदिर से लेकर बस स्टेण्ड तक दानों और भारी तादात में तिबारें व धर्मशालायें बनी हुई है, जिनमें ठहरने का कोई शुल्क नहीं लगता है। एक जगदम्बा धर्मशाला बस स्टेण्ड के समीप है जिसमें उचित शुल्क पर कमरे (स्नानघर व शोचालय सहित) भी मिलते हैं। असुविधा होने पर श्री जीणमाताजी प्रबन्ध कारिणी कमेटी से सम्पर्क किया जा सकता है जो समस्या का समाधान करती है।अन्य दर्शनीय स्थल
1. जीण मंदिर से दक्षिण की और पहाड़ की चोटी पर ‘‘काजल शिखर मंदिर’’2. जीण मंदिर से उतर में 6 मील पर ‘‘ हर्षनाथ भैरू का मंदिर’’
3. हर्षनाथ भैरू के पहाड़ नीचे ऐरोड्राम
4. हर्षनाथ भैरू के पहाड़ से पूर्व दक्षिण की तलहटी में ‘‘स्यालू सागर’ झील जिसमें नमक तैयार होता है।
5. जीणमाता जी के मंदिर से पश्चिम से पहाड़ के नीचे जीणवास नामक बस्ती है तथा मंदिर से सीधा पूर्व में जीणमाता जी का वास की बस्ती है। यहाँ पुजारियों व बुनकरों की बसावट है।
6 . मन्दिर के समीप पुजारियां के पुर्वज माला बाबा की धूणी है।
7. मन्दिर के निकट ही तीन अच्छे झरने व एक तालाब और एक कुआ है। यहाँ शिव मंदिर भी है मंदिर के पश्चिम मे इसके ऊपरी भाग के पास राव राजा सीकर का बनवाया हुआ एक ‘‘गोला’’ नामक तालाब है। इस का पेंदा टूटा हुआ होने से पानी नहीं रूकता। इसके समीप राव राजा का बंगला भी है।
8 . स्थानीय संघन जाल और झाडिय़ों के पेड़ो से लूमालूम औरण प्राकृतिक सौन्दर्य दर्शाता है, वर्षाकाल में इसकी छटा अत्यन्त ही मनोमुग्धकारी हो जाती है।
Created by :Rajkumar

Very good
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